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प्र वां॒ महि॒ द्यवी॑ अ॒भ्युप॑स्तुतिं भरामहे। शुची॒ उप॒ प्रश॑स्तये ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra vām mahi dyavī abhy upastutim bharāmahe | śucī upa praśastaye ||

पद पाठ

प्र। वा॒म्। महि॑। द्यवी॒ इति॑। अ॒भि। उप॑ऽस्तुतिम्। भ॒रा॒म॒हे॒। शुची॒ इति॑। उप॑। प्रऽश॑स्तये ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:56» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:8» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब शिल्पविद्या की शिक्षा को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे शिल्पविद्या में प्रवीणो ! जिससे हम लोग (प्रशस्तये) प्रशंसित (शुची) पवित्र (महि) महागुणयुक्त (द्यवी) प्रकाशमान को (अभि, उप, प्र, भरामहे) सब ओर से अच्छे प्रकार धारण करते हैं इससे (वाम्) आप दोनों अध्यापक और क्रिया करनेवालों की (उपस्तुतिम्) उपमायुक्त प्रशंसा करते हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - जिनके समीप से शिल्प आदि विद्या ग्रहण की जाती हैं, उनका आदर मनुष्य सदा करें ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ शिल्पविद्याशिक्षामाह ॥

अन्वय:

हे शिल्पविद्याप्रवीणौ ! यतो वयं प्रशस्तये शुची महि द्यवी अभ्युप प्रभरामहे तस्माद् वामुपस्तुतिं कुर्महे ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (वाम्) युवयोरध्यापकक्रियाकर्त्रोः (महि) महागुणे (द्यवी) द्योतमाने (अभि) (उपस्तुतिम्) उपमितां प्रशंसाम् (भरामहे) धरामहे (शुची) पवित्रे (उप) (प्रशस्तये) ॥५॥
भावार्थभाषाः - येषां सकाशाच्छिल्पादिविद्या गृह्यन्ते तेषां मान्यं मनुष्याः सदा कुर्वन्तु ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्यांच्याकडून शिल्पविद्या ग्रहण केली जाते त्यांना माणसांनी सदैव मान द्यावा. ॥ ५ ॥